TONK // 69 वर्षीय 105 क्षुल्लक शील सागर आचार्य संघ सानिध्य में अतिशय क्षेत्र टोंक में पंचतत्व में लीन

69 वर्षीय 105 क्षुल्लक शील सागर आचार्य संघ सानिध्य में अतिशय क्षेत्र टोंक में पंचतत्व में लीन हो बिरले आत्मा जो धर्मात्मा बन कर वैराग्य धारण कर दीक्षा संयम के मंदिर पर संलेखना का कलशारोहण कर परमात्मा बनने की राह पर अग्रसर होते हैं। समाधिस्थ मुनि श्री निर्मल सागर जी की जन्म एवं समाधि भूमि अतिशय क्षेत्र टोंक में क्षुल्लक श्री शील सागर जी का कल रात्रि 12.43 को आचार्य श्री के श्री मुख से अरिहंत सिद्ध सुनते समाधि मरण होने से विमान यात्रा चकडोला आज 8 अक्टूबर को निकाला गया। दिन रात मेरे स्वामी, में भावना यह भावु देहांत के समय में तुमको न भूल जावू। मरण समय गुरु पाद मूल हो संत समूह रहे, पंडित पंडित मरण हो ऐसा अवसर दो। इन सारगर्भित भावनाओ को बिरले ही भव्य जीव अपने जीवन मेचरितार्थ करते है। पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर से 2 अक्टूबर वर्ष 2025 में दीक्षित 69 वर्षीय कलोल अहमदाबाद निवासी समाधिस्थ क्षुल्लक शीलसागर जी का डोला विमान यात्रा निकाली गई। क्षुल्लक श्री की चकडोलयात्रा बैंड बाजे के साथ निकाली गई जो जैन नसिया होते हुए सवाई माधोपुर चौराहा वो बाड़ा चौराया के पास नंदलाल जी संघी की फैक्ट्री पर पहुंचे जहां आगे कमंडल लेकर भूमि शुद्धि का समाज को प्राप्त हुआ वैराग्य दर्शन समाधिस्थल परिसर में मंत्रोचार से स्थल शुद्धि की गई। श्री शील सागर जी श्री की पूजन, शांतिधारा, पंचामृत अभिषेक उल्टेक्रम से गृहस्थ अवस्था के परिवार द्वारा किया गया। इस अवसर पर लगाने का सौभाग्य परिजनों के साथ आचार्य श्री ने बताया कि उत्कृष्ट समाधि होने पर समाधिस्थ जीव अगले दो भव जन्म से 8 भव में निश्चित मोक्ष जाते हैं मरण सुमरण हो, समाधि मरण हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। आज की धर्म सभा में आचार्य श्री वर्धमान सागर ने बताया कि रत्नत्रय के तीन प्रमुख सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र से मोक्ष मार्ग प्राप्त होकर जन्म जरा मृत्यु का विनाश होता है।
देव शास्त्र गुरु चरण में ही रत्नत्रय धर्म का मार्ग मिलता है क्योंकि मोक्ष मार्ग ही अविनाशी फल है लौकिक फल तो नश्वर होता है इसलिए आपको पुण्य का बंध करना चाहिए पाप के बंध से कर्मों का आश्रव होता है जैसे कार्य करेंगे वैसे ही कमर्मों का बंध होगा मन को देव शास्त्र गुरु की भक्ति में लगाने से शाश्वत सुख की संपदा प्राप्त हुई हैं। होगी पांच इंद्रीय विषय भोगों से नर्क और तिर्यच गति का दुख प्राप्त होगा। यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने टोंक नगर में क्षुल्लक श्री शील सागर जी की समाधि पश्चात भक्तों की धर्म सभा में प्रकट की। राजेश पंचोलिया के अनुसार कलोल के अवनीश भाई ने टोंक में क्षुल्लक दीक्षा आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के सिद्धहस्त करकमलों से हुई आपका नाम श्री शील सागर जी किया गया। ऐसा लगता हैं कि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी द्वारा घोषित अतिशय क्षेत्र अब निर्वाण सिद्ध भूमि हो गया हैं जबसे आचार्य श्री का चातुर्मास 55 वर्षों के बाद हुआ हैं। समाज प्रवक्ता पवन कंटान व विकास जागीरदार अनुसार सकल जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम में टोंक नगर के अतिरिक्त निकट के अन्य नगरों से भक्त अंतिम दर्शन हेतु शामिल हुए। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ की मुनि श्री विशाल सागर जी मुनि श्री चिन्मय सागर जी सहित तीसरी समाधि है । इस मौके पर आचार्य वर्धमान सागर वर्षायोग समिति के अध्यक्ष भागचंद फुलेता कार्यकारी अध्यक्ष धर्मचंद दाखिया मंत्री राजेश सर्राफ सह मंत्री धर्मेंद्र पासरोटियां कमल सर्राफ अशोक झिराना लालचंद फूलता नरेंद्र छामुनिया , ओम ककोड़ विकास अत्तर मुकेश बरवास अंकित बागड़ी टोनी आड़रा, राजेश पंचोलिया, अंकुर पाटनी आदि लोग मौजूद थे।
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टोंक से अशोक शर्मा की रिपोर्ट