rajasthan भद्रकाली मंदिर में कल्याणी रूप में दो शेरों पर विराजित हैं माता, इस तरह का देश में इकलौता
rajasthan के सिरोही जिले के आबूरोड उपखंड में ऋषिकेश स्थित भद्रकाली मंदिर का इतिहास 5 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें मां काली कल्याणी रूप में विराजमान हैं तथा दो शेरों पर सवार हैं। माता के इस रूप में विराजमान होने से यह मंदिर को सबसे अलग रखता है। दावा यह भी किया जा रहा है कि यह इस तरह का देश का इकलौता मंदिर है।
राजस्थान-गुजरात के अंतिम छोर पर सिरोही जिले के आबूरोड में घनी पहाड़ियों एवं जंगल में प्राकृतिक वातावरण के बीच बसा मां भद्रकाली मंदिर के बारे में कहा जाता है कि पांच हजार साल पहले अमरावती नगरी के राजा अंबरीश ने सालों तक मां की कठोर तपस्या की थी। इससे प्रसन्न होकर भगवान ऋषिकेश, कर्णिकेश्वर महादेव एवं मां काली प्रकट हुई थीं। राजा अंबरीश ने मां भद्रकाली से उनके इसी स्वरूप में यहां विराजमान होने का वर मांगा था, उसके बाद से मां यहां भक्तों का कल्याण करने के लिए कल्याणी रूप में विराजमान हैं।
इस मंदिर को चार बार बनाया गया है वर्तमान मंदिर 300 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस देवी मंदिर का जिक्र शिव पुराण में मिलता है। वर्तमान में मंदिर सिरोही देवस्थान बोर्ड के अधीन है। मां भद्रकाली गुजरात के सिद्धपुर और मेहसाणा के ब्राह्मण समाज की कुलदेवी होने से यहां काफी संख्या में गुजरात से भक्त आते हैं। आबूरोड रेलवे स्टेशन एवं बस स्टैंड से मंदिर की दूरी करीब 5 किलोमीटर है। यदि आप ट्रेन या बस से आ रहे हैं तो दोनों ही जगह से ऑटो या टैक्सी से आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है। खुद के वाहन से आ रहे हैं तो आपको मानपुर सर्कल आना पड़ेगा। वहां से मंदिर की दूरी 2 किलोमीटर है।
महाराव केसरीसिंह ने करवाया था जीर्णोद्धार
प्राचीनकाल में मंदिर काफी पुराना होने तथा समय-समय पर आई प्राकृतिक आपदाओं की वजह से मंदिर के अस्तित्व को नुकसान भी हुआ था। तब मां भद्रकाली ने तत्कालीन सिरोही रियासत के महाराव केसरीसिंह को स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने के आदेश दिए थे, इसके बाद उनके द्वारा जीर्णोद्धार कार्य करवाया गया था। वर्तमान में मंदिर में महाराव केसरसिंह द्वारा देवी मां की पूर्वोन्मुखी प्रतिमा स्थापित करवाकर प्रतिष्ठा करवाई गई थी। पुराने दो मंदिरों में से एक मंदिर वर्तमान मंदिर के पीछे और सबसे पुराना मंदिर वर्तमान मंदिर के सामने सड़क के दूसरी तरफ पहाड़ी पर बना हुआ है।